नशा या एडिक्शन एक ऐसी बीमारी है जो इसके पीड़ित के शरीर के साथ साथ उसके विचार, व्यवहार और भावनाओं को भी विकृत कर देती है। इसके पीड़ित के विचार विकृत हो जाते है उसके विचार आत्मकेंद्रित और स्वार्थी हो जाते है जिस कारण वह सिर्फ अपने बारे में सोचता है और उसके विचार पूरी तरह से नकारात्मक हो जाते है वह हर कार्य, लोगों और परिस्थितियों में बुराई सबसे पहले ढूंढता है। व्यक्ति का व्यवहार पूरी तरह से उसके विचारों पर निर्भर होता है जिस व्यक्ति के विचार नकारात्मक हो जाते है उसका व्यवहार में भी नकारात्मकता हावी हो जाती है वह वो कार्य करने लगता है जो शायद वो खुद भी न करना चाहे, नशैलची को आप घर और बाहर लोगों से छोटी छोटी बातों पर लड़ते, बहस करते, तोड़ फोड़ करते देख सकते है इसके साथ साथ वो लोगों की बुराई करने लगता है कमियां निकलने लगता है और उसकी किसी के साथ नहीं पटती है। वह हर कार्य में नकारात्मक पक्ष पर ज्यादा जोर देने लगता है। जैसे जैसे एक व्यक्ति का नशा बढ़ता जाता है उसकी भावनाएं भी विकृत या ख़राब होती जाती है जिसके कारण वह हमेशा अकेलापन, अधूरापन और बैचेनी महसूस करता है और इसका कारण उसके अंदर नकारात्मक भावनाएं जैसे क्रोध, खुन्नस, भय, घृणा, अपराधबोध, हीनभावना और जलन इत्यादि भावनाओं का प्रबल होना होता है।
एक नशैलची को नशा बंद न कर पाने और दुबारा नशे की और ले जाने में सबसे बड़ा हाथ उसकी नकारात्मक भावनाओं का होता है इसीलिए उसके भय, खुन्नस, अपराधबोध और हीनभावना के समाधान की भी आवश्यकता होती है जिसको काउन्सलिंग और साइकोथेरेपी के माध्यम से दूर किया जा सकता है। नशा मुक्ति केंद्र में मरीज के विचार और भावनाओं पर भी कार्य किया जाता है जिससे वे अच्छा महसूस करने लगते है और नशे से दूर बने रहते है।