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भारत सरकार के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने एम्स के नेशनल ड्रग डिपेंडेंट ट्रीटमेंट सेण्टर के माध्यम से भारत में नशे की स्थिति पर एक सर्वे करवाया है। इस सेण्टर ने जनवरी 2019 में एक रिपोर्ट दी जिसका शीर्षक है “मैग्नीट्यूड ऑफ़ सब्स्टेन्स यूज़ इन इंडिया” इस रिपोर्ट के अनुसार भारत में लगभग 28 करोड़ लोग किसी न किसी मादक पदार्थ का सेवन कर रहे है जिनमे से 16 करोड़ लोग शराब और 12 करोड लोग अन्य मादक पदार्थों का सेवन कर रहे है ।

इसके अनुसार लगभग 7.5 करोड लोग गंभीर स्थिति में पहुँच गए है। गंभीर स्थिति से तात्पर्य है कि वे अपने नशे को नियंत्रण नहीं कर पा रहे है और न ही बंद कर पा रहे है। इस रिपोर्ट के ही अनुसार इनमे से लगभग 6 करोड लोग नशा छोड़ना चाहते है पर वो सुविधाएं न मिलने के कारण ऐसा नहीं कर पा रहे है। भारत में प्रत्येक वर्ष लगभग 20 लाख लोग तंबाकू से होने वाली बीमारियों के कारण मर जाते है और लगभग 5 लाख लोग हर वर्ष शराब के कारण मर जाते है।इन 5 लाख लोगों में वो लोग शामिल नहीं है जो अप्रत्यक्ष तौर पर शराब के कारण मरते है, जैसे शराबी पति की प्रताड़ना के कारण बहुत सी महिलाएं आत्महत्या कर लेती है, बहुत से शराबियों के हाथों नशे में छोटी छोटी बातों में हत्याएं हो जाती है और जब कोई शराबी नशे में चूर होकर गाडी चलता है तो वो केवल खंबे से नहीं टकराता है बल्कि बहुत से लोग भी उसके सामने आने के कारण मर जाते है, क्या इन सब मौतों के लिए भी शराब ही जिम्मेदार नहीं है ?
इस रिपोर्ट में बताया गया है कि लगभग 1 करोड बच्चे सूंघने वाले नशे कर रहे है जिनमे व्हाइटनर और सिलोचन जो की जूते चिपकाने पंचर बनाने और फर्नीचर बनाने में काम आता है, इनमे स्ट्रीट चाइल्ड बहुत ज्यादा है एक सर्वे के अनुसार लगभग 85% स्ट्रीट चाइल्ड एडिक्ट हो चुके है जो कि अधिकतर सूंघने वाले नशे करते है।
यहाँ ये जानना जरूरी है कि ये स्ट्रीट चाइल्ड आते कहाँ से है,जब उन बच्चों से जो की रोडों पर लावारिस घूमते रहते है उनसे उनके घर का पता पूछा गया तो उनमें से अधिकतर बच्चे वो थे जिनके पिता घर में शराब या अन्य नशा करके उनको और उनकी माँ को बेरहमी से मारा करते थे वे बच्चे रोज की मारपीट से तंग आकर एक दिन घर से भाग गए और वे अब कभी घर जाना भी नहीं चाहते। ये मासूम शराब के सताये बच्चे बड़े होकर असामाजिक तत्व बनते है और आपराधिक गतिविधियों में लिप्त रहते है।
हमने ऊपर देखा की लगभग 5 लाख लोग हर वर्ष शराब के कारण मर जाते है और आश्चर्य वाली बात यह है कि इनमें से अधिकतर को डॉक्टर बता चुका होता है कि यदि और पियोगे तो मर जाओगे ,फिर भी लोग न पीकर बचने की जगह पीकर मर जाते है, हम इस बात से इसकी भयावहता का अंदाजा लगा सकते है कि एक सीमा से आगे जाने के बाद खुद को रोकना लगभग असंभव होता है।
यदि हम इस बात पर विचार करें की क्यों ये स्थिति आती है तो हम पाएंगे कि इसका मुख्य कारण नशे की समस्या के बारे में समाज में व्याप्त गलत धारणाएं है। हमारे समाज में नशे की समस्या को एक बुरी लत या एक सामाजिक बुराई के तौर पर देखा जाता है जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन 1964 में एडिक्शन को बीमारी घोषित कर चुका है।
हमारे समाज में जब कोई व्यक्ति एडिक्ट हो जाता है तो उसको ठीक करने के लिए सबसे पहले पीटा जाता है,जब पिटाई से काम नहीं होता तो फिर पूजा पाठ और बाबा भभूत से उसको ठीक करने की कोशिश की जाती है, जब ये सब तरीके असफल हो जाते है तो आखिरी में ये कहा जाता है कि इसकी शादी कर दो शादी के बाद ये ठीक हो जायेगा।

क्या हम किसी और बीमारी को ऐसे ठीक करने की कोशिश करते है ?
जो व्यक्ति एडिक्शन की बीमारी से पीड़ित हो जाता है उससे कहा जाता है कि इसको इच्छा शक्ति से छोड़ सकते हो जब विश्व स्वास्थ्य संगठन कह रहा है कि एडिक्शन एक बीमारी है तो इसको इच्छा शक्ति से कैसे ठीक किया जा सकता है ? क्या किसी और छोटी सी बीमारी जैसे लूज़ मोशन या वायरल फीवर को इच्छा शक्ति से ठीक किया जा सकता है ? तो इसको जवाब नहीं होगा तो फिर हम एडिक्शन जैसी जानलेवा बीमारी को कैसे इच्छा शक्ति से दूर कर सकते है।
इन सब उपरोक्त कारणों के कारण व्यक्ति का एडिक्शन पुराना हो जाता है और उसके बाहर आने की सम्भावना कम होती जाती है।
नशे की बीमारी में भी पीड़ित को अन्य बीमारियों की तरह ही उपचार की आवश्यकता होती है, कोई बीमार व्यक्ति अपना उपचार स्वयं नहीं कर सकता है जबकि हम शुरू से उसके दिमाग में ये बात भर देते है कि वो खुद ठीक हो सकता है वो बेचारा खुद ही अपना उपचार करता रहता है जिसका कोई नतीजा नहीं निकलता है।
यदि किसी व्यक्ति की नशे पर अत्यधिक निर्भरता है तो यदि अचानक बिना चिकित्सकीय सहायता के उसका नशा बंद किया जाता है तो एक अवस्था या सकती है जिसे डिलिरियम कहते है जिसमे बीमार व्यक्ति स्थान और समय के प्रति जागरूक नहीं रह जाता है जिस कारण कार्डियक अटैक से उनकी मौत भी हो सकती है। बहुत से शराबियों को परिजनों ने शराब पीने से रोकने के लिए कमरों में बंद कर दिया है जहाँ से फिर उनकी लाश ही निकली है।

अतः एकदम से नशे बंद करने के लिए चिकित्सकीय सहायता की आवश्यकता होती है और इसके बाद ही उनको साइकोलॉजिकल प्रोग्राम एवं काउन्सलिंग की मदद से ही नशे से दूर रखा जा सकता है।
किसी भी चिकित्सा शास्त्र में ऐसी कोई दवाई उपलब्ध नहीं है जिनको खिलाकर नशे छुड़वाए जा सकें।
कुछ लोग शराबी को बिना बताये शराब छुड़ाएं के नाम पर एक फार्मूला बेचते है जो की शराब के साथ मिल कर रिएक्शन करता है जिसमे शराबी का चेहरा लाल हो जाता है और उसकी हार्ट बीट बढ़ जाती है जिस कारण वो शराब पी नहीं पाता है, पर उसकी शराब पीने की इच्छा बनी रहती है जैसे ही दवाई दी जानी बंद की जाती है वो फिर शराब पीने लगता है।
नशे से दूर होने के लिए एक गहरे मानसिक बदलाव की आवश्यकता होती है जिसके लिए अल्कोहोलिक्स एनोनिमस और नारकोटिक्स एनोनिमस जैसे 12 स्टेप प्रोग्राम सबसे प्रभावी सिद्ध हुए है।
किंतु सबसे पहले चिकित्सकीय सहायता की आवश्यकता होती है इसको किसी की मदद से ही किया जाना चाहिए।

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